कर्म और पहचान
विध्न बाधाएं कई आते हैं,
इच्छाओं से पुलकित मन में,
सीमाहीन भव्य गगन में,
अपना एक पहचान बना तू।
बाधाओं को कर तू पार,
ए वीर तू मत मान हार,
कर कायम अपना एकाधिकार,
अपने दायित्वों को कर स्वीकार।
सीमाहीन अंतरिक्ष को,
अपने कर्मों से तू नाप,
ए वीर तेरा पहचान हो जग में,
कुछ ऐसा कर्म करके दिखला जा।
पुष्प, लताएं, वृक्ष विभूषित,
होंगे वे उन्मुक्त चरण पर,
बस तू अपना कर्म करता जा,
अपना एक पहचान बना जा।