“कर्मशीलता”
सूरज- “मैं धरती पर धूप व उजाला भेजता हूँ, मैं बड़ा हूँ ।”
बादल- “मैं जल बरसाता हूँ ,अन्नजल की पूर्ति करता हूँ, मैं बड़ा हूँ”
चंद्रमा- “मैं अपनी शीतल किरणों से वनस्पति को पुष्ट करता हूँ, मैं बड़ा हूँ।”
रात -“मैं बड़ी हूँ क्योंकि मैं धरती के प्राणियों को आराम देती हूँ।”
हवा -“तुम सबमें मैं बड़ी हूँ, क्योंकि मैं जीवनदायिनी वायु हूँ, यदि मैं कुछ पलों के लिए बहना बंद हो जाऊं तो धरती पर जीवन खत्म हो जाएगा ऐसी स्थिति में तुम सब अस्तित्वशून्य हो जाओगे।” तभी आकाशवाणी सुनकर सभी स्तब्ध रह जाते हैं।
आकाशवाणी-“तुम सब व्यर्थ ही झगड़ा कर रहे हो, तुममें से कोई बड़ा नहीं है, अगर कोई चीज़ बड़ी है तो वह है- तुम्हारी ‘कर्मशीलता’ ! यदि तुम में से कोई भी कर्मशील नहीं रहेगा तब न तो यह धरती रहेगी न ही उस पर फलता-फूलता जीवन।”
यथार्थ का बोध हो जाने पर सभी पुनः अपने-अपने कर्म में तत्परता से लग गए।
जगदीश शर्मा सहज