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13 Sep 2023 · 1 min read

कर्मफल ढो रही है

कर्मफल ढो रही है
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वो भी तो अबोध नादान है
पर विपरीत परिस्थितियों में
खुद को अपनी उम्र से भी
बहुत ऊपर समझती है,
छोटी सी उम्र में अपनी छोटी बहन को
मां सदृश सहेजती हुई
जीवन के थपेड़ो को सहती,
खुद पर विश्वास करती
वो आगे बढ़ती है।
विकास के किरणों की उम्मीद में
गतिशील है चिलचिलाती धुप में।
यह देखकर भी हम विचलित नहीं होते
हम तो बस अपनी ही दुनिया में खोये रहते।
उसका अतीत क्या, वर्तमान क्या
हम कहां फिकर करते?
हम तो नीति नियंता, सभ्य समाज
और धर्म ध्वजा वाहक हैं,
हमें किसी की भूख, लाचारी या बेचारगी से मतलब
हमें तो इसका ज्ञान तक नहीं है
वो भी इसलिए कि हमें अपने
मानवीय मूल्यों से तनिक सरोकार ही नहीं है।
वो जो सड़क पर बेबस लाचार दिख रही है
अपना कर्म फल ढो रही है।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित

Language: Hindi
1 Like · 61 Views

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