कर्फ्यू
लघुकथा
शीर्षक – कर्फ्यू
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घाटी में लगे कर्फ्यू से पूरे इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ था, कहीं से भी किसी परिंदे की चहचहाहट तक नही सुनाई पढ रही थी, तभी किसी के कदमों की आहट ने सन्नाटे को तोड़ा…..
” खबरदार, जान की सलामती चाहते हो तो हाथ ऊपर करो” कैप्टन सिंह दहाड़े
तब तक वह कदमो की आहट उनके सामने थी… एक बारह तेरह साल का लड़का गंदे से चीथडो में लिपटा हुआ और चेहरा भी मुरझाया हुआ सा…
” क्या चाहिए?” कैप्टन ने पूछा
” जनाब मूँगफली लेंगे क्या, एक दम गर्म करके लाया हूँ ”
” क्या नाम है? कहाँ रहता है?”
” जी सुलेमान, उस पहाड़ी पर रहता हूँ”
” तुझे पता नहीं कि तीन दिन से कर्फ्यू लगा है किसी का आना जाना मना है अगर मै बिना पूछे ही गोली मार देता तो…
” मार देते जनाब तो अच्छा ही रहता, बाप को आतंकियों ने मार दिया, बीमार माँ बिस्तर पर पड़ी है, छोटे भाई बहन भूख से मर रहे हैं, तीन दिन से चूल्हा नही जला…उन्हें कैसे समझाऊ कि कर्फ्यू लगा है, माँ की कराह और भाई बहनों के सिकुड़ते तन मुझसे नहीं देखे जाते…
” जनाब कर्फ्यू में शहर बंद हो जाते हैं बाजार बंद हो जाते हैं दुकान बंद हो जाती है लेकिन भूख और बीमारी बंद नहीं होती”
राघव दुबे
इटावा