कर्तव्य
” कर्तव्य ”
साठ बसंत देख चुकी ‘कमली’ को देखकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि वह जीवन के छह दशक पूरे कर चुकी है | वह घर के सारे काम तन्मय होकर करती और माथे पर एक शिकन भी नहीं लाती थी | सुबह-सुबह हाथ की आटा चक्की चलाने के साथ ही उसका काम शुरू हो जाता था | दो बैल,एक ऊँट,एक भैंस, दो गाय और चार बकरियों को चारा देने के अलावा बहू-बेटे का टिफिन बनाती और सबको सुबह का नाश्ता करवाकर खेत में जाती | दिनभर की कड़ी धूप में तपते बदन पर पसीना बहता रहता और फिर सूख जाता था | भरी दुपहरी में सिर पर घास का बड़ा सा गठरा लेकर घर आती तो कोई एक गिलास पानी भी पिलाने वाला नहीं था | हाथ-मुँह धोकर मटके का ठंडा पानी पीकर अपनी सारी थकान मिटाकर चूल्हे को जलाने चली, पर आज चूल्हे की ढकी हुई आग बुझ चुकी थी | तभी पड़ौस की काकी ‘हरकोरी’ के पास जाकर मिट्टी के ढ़क्कन में आग लाती है, फिर चूल्हा जलाकर सबका भोजन बनाती है | ‘कमली’ की एक ही कमजोरी थी…वह सबको घी में भीगी रोटियाँ खिलाती थी ,पर अाप सूखी रोटी ही खाती | कोई ये भी नहीं देखता था ,कि उसने अपने लिए तरकारी बचाई है कि नहीं | ‘कमली’ सबको खिलाकर खुद तरकारी की हांडी में से रोटी के टुकड़े से थाली में डाल शेष बची तरकारी को ऐसे खाती थी ,जैसे तल्लीन होकर कोई पूजा-पाठ करता है…बिल्कुल शांत !
कहने को तो उसकी बहू ‘सुनामी’ अध्यापिका थी……..पर कर्तव्य,शिष्टाचार,आदर, जैसे शब्दों का दूर -दूर तक कोई वास्ता न था | वह जब भी ‘कमली’ को देखती नाक सिकोड़ती रहती ……उसका काला रंग जो था ! ‘कमली’ को तो सब मालूम था ,पर ! उसने कभी इस बात का बुरा नहीं माना…बेटी और बहू में कभी फर्क नहीं करती थी ,बल्कि बहू के लिए हमेशा बेटी से बढ़कर करती और कहती की देखो मेरी तो ‘सुनामी’ ही बेटी है …कई बार तो इस बात को लेकर ‘कमली’ की बेटी ‘लक्ष्मी’ मुँह फुला लेती ,लेकिन तत्काल वह मान भी जाती |
‘सुनामी’ का आलस्य ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बनकर प्रकट हुआ ….अचानक से एक दिन उसका शरीर फूल गया और वह निढाल होकर बिस्तर पर पड़ी गई | ‘कमली’ ने हालत को भाँपते हुए पास के शहर में डॉक्टर को दिखाया | डॉक्टर ने जाँच के बाद बताया कि ‘सुनामी’ के दोनो गुर्दे जवाब दे चुके है ….और गुर्दा प्रत्यारोपण की सलाह दी | कुछ पल के लिए ‘कमली’ का अंतर्मन हिल गया ….और कोने में जाकर अपने आँसूओं को काबू किया | कमली ने डॉक्टर से विनती की कि कुछ भी करना पड़े ,पर ‘सुनामी’ को बचा लीजिए ….लेकिन गुर्दा कहाँ से लाएँ माँ जी ? क्यों कि सुनामी के रक्त-समूह वाले व्यक्ति का गुर्दा ही प्रत्यारोपित किया जा सकता है….डॉक्टर ने कहा | सुनामी के माता-पिता यह बात सुनते ही वहाँ से रफूचक्कर हो गये |
आखिर बहू को तो बचाना ही है…..कमली मन ही मन मंथन कर रही थी ,तभी उसे अचानक स्मरण हुआ, कि जब पिछली बार उसने अपना खून दान किया था, तो उसे बताया गया था कि उसका रक्तसमूह ‘ओ’ है …वह अचानक उठी और शानदार लहजे और गर्व के साथ ‘सुनामी’ के पास पहुँची और सिर पर प्यार भरा हाथ फेरते हुए बोली ,…’सुनामी’ बेटा ! तू कोई चिंता मत कर ! जब तक मैं बैठी हूँ ,तेरा बाल भी बांका नहीं होने दूँगी ….उसकी बातों में अटूट विश्वास था | अब कमली चल पड़ी थी इस जंग को जीतने के लिए… बेटे ने तो हाथ ऊपर कर दिये फकीर की तरह….जो कुछ करना है उसे ही करना है | वह गाँव गई तथा अपने सारे जेवर साहूकार को बेच दिये और अब तक की जमा पूंजी को जोड़कर दो लाख पैंसठ हजार सात सौ रूपये ही एकत्रित हो पाये …तभी कमली को पशुओं का ख्याल आया और दूसरे दिन केवल ऊँट और दो बकरियों को छोड़कर सभी को बेच दिया ….अब ऑपरेशन के लिए तैयार हो चुकी थी वह |
दूसरे दिन ऑपरेशन सफल रहा …, कमली ने अपना एक गुर्दा ‘सुनामी’ को दे दिया | ‘कमली’ की चिंता दूर हुई जब डॉक्टर ने कहा ……..माँ जी अब कोई खतरा नहीं रहा ,कुछ दिनों में ‘सुनामी’ अच्छी हो जायेगी | ‘कमली’ ने डॉक्टर का मन ही मन आभार व्यक्त किया और सकून की साँस ली |कुछ दिनों बाद ‘कमली’ , बहू को लेकर घर आ गई और अपने एक गुर्दे के सहारे ‘सुनामी’ की देखभाल करती … ये क्या ? दस महीने ही गुजरे थे कि ‘सुनामी’ शहर में रहने के लिए जा रही थी…’कमली’ ने भी अपनी स्वीकृति यह कहते हुए दे दी कि….. बेटा ! कहीं भी रहो तुम खुश रहो ….. पर ! सुनामी के मन की बात को भाँप चुकी थी ‘कमली’ | लेकिन उसने सीने पर पत्थर रख लिया था |वह अपना ‘कर्तव्य’ निभा रही थी ….वह थी ही ऐसी…जो कर्तव्य उसका नहीं था …उसको भी तो बेझिझक निभा़या था कमली ने….ना कोई दु:ख ना कोई शिकवा ! आज भी ‘कमली’ हाथ की चक्की का आटा ही पीसती है….और वही खेत और घर का काम …बहू ‘सुनामी’ ने कभी पूछा तक नहीं, कि उसकी सास जिंदा भी है या नहीं…कभी पलटकर नहीं आई वो शहर से !!!!?
(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)