कर्तव्य
उम्मीदों के साये में जी रहे थे हम
फर्ज की लड़ियों में मोती पिरो रहे थे हम
उद्देश्य था उस कड़ी को पूर्ण करना,
क्योंकि उसकी पूर्णता, मे ही अपनी पूर्णता
खोज रहे थे हम
इसी असंमजस में गुजरती रही ये जिन्दगी
उस लड़ी को पूरा करने का हर सम्भव प्रयास किये हम
अपनी हर खुशी और इच्छा का त्याग किये हम
फिर भी पूर्ण न हुयी कर्तव्यों की वह लड़ी
क्योंकि समय के बहाव में यूँ ही बहते रहे यूँ हम
यूँ ही गुजर जायेगी यह जिन्दगी ,कहें कामिनी
कुछ पल तो फर्जा को छोड़, जी लें ये जिन्दगी हम
छोटी-छोटी खुशियों से आनंदित हो ले हम
आओ अपना यह जीवन, फर्जो के साथ
भी जी ले हम, कर्म के साथ भी जो ले हम
स्वयं भी मुस्कुराये और ,सबको भी हंसाये हम
सब ओर आनन्द का माहौल बनाये हम ,
सकारात्मकता का प्रकाश फैलायें हम
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)