कर्तव्यपथ
अपने-अपने कर्तव्यों का, निष्ठा से यदि पालन होगा।
प्रेम हृदय में पुष्पित होगा, फुलवारी सा जीवन होगा।।
उद्वेलित मन की चंचलता, कलुषित मन के कारण ही है।
हठधर्मी बनकर हमने भी, सठता अपनी धारण की है।।
मर्यादा के बल पर ही तो, सागर के तटबंध टिके हैं।
कर्तव्यों के बल पर ही तो, दुनिया में संबंध टिके हैं।।
भूले-भटके मानव को यदि, कर्तव्यों का बोध रहे तो।
अन्तःस्थल का तम मिट जाए, अंतर्मन में शोध रहे तो।।
किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं जो, युग-चारण होगा वह अब से।
कालांतर में उस मानव का, पुष्पों से अभिनंदन होगा।
चलते हैं कर्तव्य मार्ग पर, सूरज, चंदा, जुगनू, तारे।
संयम की सीमा में रहते, नक्षत्रों के मण्डल सारे ।।
तन स्वर्णिम हो,मन मैला हो, फिर कैसे विश्वास जगेगा।
प्रेम सरोवर सूख गया तो, इस दुनिया में कौन रहेगा।।
ऋतुओं का अनुकूलन पाकर, फल देते हैं पादप सारे।
नियमों के प्रतिकूल चला वह, अपने पैर कुल्हाड़ी मारे।।
सोचो यदि जग का निर्माता, कर्तव्यों से च्युत हो जाए।
फिर कैसे उसकी सत्ता का, दृढ़ता से संचालन होगा।।
तृष्णा दिन – दूनी बढ़ती है, तृष्णा को कैसे रोकोगे।
और अनैतिक दुष्कर्मों का, नश्वर धन कब तक भोगोगे।।
हर कोई लालच में डूबा, ईश्वर जाने कैसा कल है।
कालातीत हुई सच्चाई, कलयुग का ऐसा ही फल है।।
आशा है आगे की पीढ़ी, आदर्शों की बात करेगी।
वीरोचित थाती को जाने, कितने दिन तक याद रखेगी।।
कर्तव्यों की बलिवेदी पर, दृढ़व्रत होकर कौन चढ़ेगा।
हिंसा और अनैतिकता का, जाने कब उन्मूलन होगा।।
/जगदीश शर्मा सहज