कर्ण वचन
प्रभायुक्त इस मुखमंडल पर
विकलता क्यों छाई है,
खामोशी का कारण क्या है
जो इतना घबराई है।
बता माते क्या तेरी है वेदना,
जो आज सुतपुत्र के पास
आयी है।
तुम सूतपुत्र नही कौन्तेय हो
मेरे लाल,
तेरा अस्तित्व इस आसमान
से भी है बिकराल।
प्रथम पुत्र हो तुम मेरे नही
हो तुम राधेय,
कौमार्य अवस्था में तुझे जना
पिता तेरे है सूर्यदेव।
हे ! दुर्धर्ष पुत्र सांसारिक मर्यादा
वश मैंने अपने से तुझे दूर किया,
लोक -लज्जा के भय वश मुझसे
घोर अपराध हुआ।
आज तेरी जननी आयी है तेरे द्वार,
देने तुझें हस्तिनापुर की राजगद्दी
का उपहार,
छोड़ दे साथ उस कपटी दुर्योधन का,
पकड़ ले तू मार्ग सत्य-अहिंसा का।
जैसे धरती पर नही है बलराम-कृष्ण
जैसा कोई बलवान,
तुम अर्जुन अगर मिलें तो नही होगा
कोई योद्धा तुम्हारे समान।
रंगभूमि में सूतपुत्र कहके किया
गया मेरा निरादर,
उस वक़्त जागृत क्यों नही हुआ
आपका ममत्व।
तुम कहती हो छोड़ दूँ साथ दुर्योधन का,
कैसे भूल जाऊँ फ़र्ज़ मित्र धर्म का।
जिसनें पल भर में मुझें बनाया राजा
अंगदेश का,
मर कर भी नही उतार सकता मैं ऋण
सुयोधन का।
अगर छोड़ दूँ इस संकट की
घड़ी में दुर्योधन का साथ,
सारे जग में होगा तेरे कर्ण का
उपहास।
माते तेरे पांच पुत्र जीवित रहेगें
इस धर्म युद्ध में,
मेरी होगी लड़ाई तुम्हारे वीर
अर्जुन से।
कर्ण मरे या मरे अर्जुन तेरे पांच
पुत्र रहेंगे शेष,
रणभूमि में आज तुमकों वचन
देता हैं राधेय।
(स्वरचित) ………आलोक पांडेय गरोठ वाले