कर्ण कृष्ण संवाद
रण क्षेत्र में कर्ण का
जब आया अंत समय
हाथ जोड़ कृष्ण से
उत्तर मांगे प्रश्न के
हे मुरलीधर,
हे देवकीनंदन
क्यों इतना कष्टपूर्ण
था मेरा जीवन
जन्म देते ही
त्याग दिया माॅ ने
लोक लाज के भय से
बहा दिया नदिया में
ज्येष्ठ पांडव
पुत्र था फिर भी
झेला तिरस्कार
पाया अपमान
महा बलशाली परशुराम से
पाया अस्त्र शास्त्र का ज्ञान
पर अनजाने ही कपटी
समझ दिया कठोर श्राप
बोले कृष्ण, हे कौन्तेय
यही था विधि का विधान
जिसे समझ नहीं पाता
है नादान इंसान
मेरा जन्म हुआ कारगार में
पैदा होते ही मिला वनवास
संसार का भला किया सदा
फिर भी पाया गांधारी से श्राप
हम सभी बंधे नियति से
बस कर्म ही हमारे बस में
तो सही और गलत की चिंता छोड़ो
कभी कमी ना हो कर्तव्य में
चित्रा बिष्ट