*कर्ज लेकर एक तगड़ा, बैंक से खा जाइए 【हास्य हिंदी गजल/गीतिका
कर्ज लेकर एक तगड़ा, बैंक से खा जाइए 【हास्य हिंदी गजल/गीतिका】
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(1)
जिंदगी में आदमी को, और अब क्या चाहिए
कर्ज लेकर एक तगड़ा ,बैंक से खा जाइए
(2)
हो रहे किस्तों में घोटाले उजागर आजकल
चल रहा है सीरियल जो, देखिए-दिखलाइए
(3)
अब करोड़ों की रकम, हर ऐरा-गैरा खा रहा
आप चूना बैंक को ,अरबों का तो लगवाइए
(4)
आपको करना है केवल, एक घोटाला बड़ा
चित्र अपना मुफ्त में, अखबार में छपवाइए
(5)
कर्ज लेकर बैंक से , उसको न लौटाना पड़े
यह हुनर है, सीखकर, इसको कहीं से आइए
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर【उत्तर प्रदेश]
मोबाइल 999 7 61 5451