कर्ज भरना पिता का न आसान है
फर्ज का देवता घर का अभिमान है,
कर्ज भरना पिता का न आसान है।
कोई चिंता न कर, बस ये कहता है वो,
रोटियों की जुगत में ही रहता है वो।
घर ये बनता है उसकी बदौलत ही घर,
प्यार बन कर सुबह शाम बहता है वो।
उसके होने से कुनबे की पहचान है।
कर्ज भरना पिता का न आसान है।।
बन के पीपल सदा छाँव देता है वो,
हर सफर के लिए पाँव देता है वो।
वंश भोगे नहीं कष्ट कोई यहाँ,
एक ख़ुशियों भरा गाँव देता है वो।
सोम देता भले करता विषपान है।
कर्ज भरना पिता का न आसान है।।
रंग भरता हुआ इक चितेरा है वो,
घोर अंधेर में भी सवेरा है वो।
उसका अपना नहीं स्वार्थ कोई यहाँ,
सर पे वरदान का एक घेरा है वो।
मान फिर भी न दे वो तो नादान है।
कर्ज भरना पिता का न आसान है।।
– आकाश महेशपुरी
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश