— कर्ज कैसा भी हो —
कर्ज तो कर्ज ही होता है.
जिस में खोने वाला
अपने जीवन का सब कुछ खोता है
चाहे कर्जा लिया हो ब्याज पर
चाहे कर्जा लिया हो एहसान का
संभल कम पाता है पर बहुत कुछ खोता है
पुराना चुका नही पाता
नया कहीं दुसरे से फिर ले आता है
कर्ज पर कर्ज से न जाने कैसे घर चलाता है
कैसे जी लेते हैं ऐसे लोग
जिनकी जिन्दगी दुसरे की मोहताज है
समझ नही आता इनका घर भी कब और कैसे बन पाता है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ