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19 Aug 2017 · 1 min read

करुण रस

है बैठी भू,वसुधा,अति सुन्दरी भावुक और चिन्तालीन
प्रदूषण,प्रलय भय से व्याकुल,स्वर्णिम हुई अति मलीन।
नवल कोमल सौरभ मय सुंदर सरसिज शोभा कभी पाते थे
तितली,बुलबुल, कोयल,मधुकर भी कितने आनंदित हो मंडराते थे।
सुबक बिलख कर हाय!मनु पीड़ित,दुःख-क्रन्दन कर रही।
सजल नयन हुए झरना नदिया,अश्रु बरखा नित झर रही।
अश्रु से भरती सरोवर,क्यों मनु सुखाए क्यों निर्मल जल स्त्रोत
आज हुई प्रदूषित अचला थी कभी जो स्वर्ण सलिल से ओत प्रोत।
नीलम शर्मा

Language: Hindi
1220 Views
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