करुणा भी रो गई…..
हुआ एक हादसा गमगीनी सी छा गई
थे कुछ तो नीदमें जिनकी आँखे खुली ही नहीं
पर… सदा के लिए बँध हो गई…!
अफरा-तफरी मच गई करुणा भी रो गई..!
चीखों की आवाज़ें कितना कुछ कह गई..!
साथमें सफर करते थे कई,
जिनकी जैसे आखरी सफर बन गई…!!
बिछड़ गए कितने घर परिबार टूट गए सपनें कई !
समय संजोग एवं परिस्थिति ….
यहाँ कितना जुल्म कर गई…!..!..!
देखो बया करते करते
हमारी आँखे भी छलक गई….!!!!!!