करीब आ जाओ
करीब आ जाओ
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बहुत उदास है दिल
करीब आ जाओ
कैसे कहूं क्या बात है हुजूर
करीब आ जाओ।
नींद आंखों में तो आती नहीं
यादें ही चलीं आती हैं
जख्म खाएं हैं ऐसे मेरे प्यार
करीब आ जाओ।
क्या सोचकर आए थे
हम बज़्म में उनकी,
बेआबरू होके चले हैं महफिल से
करीब आ जाओ ।
मुमकिन हो, नहीं काबिल हैं
हम तेरी इस महफ़िल के मेरे यार,
रात भर का ही तो है मसला
करीब आ जाओ।
चाहा नहीं था हमने कभी
धन और दौलत तुम्हारे दर से
एक प्यार भी न मिल सका
करीब आ जाओ ।
बार बार सोचकर भी
नहीं उठ सके महफ़िल से तुम्हारी
इल्जाम जो उठाने बाकी थे
करीब आ जाओ।
अब तो दोस्ती से भी
भरम टूट सा गया मेरा यार
ना देना अब कभी भी वास्ता इसका
करीब आ जाओ ।
पीठ पर दोस्ती के आज
नश्तर चुभो गया कोई,
देना नहीं दुहाई अब कभी इसकी
करीब आ जाओ।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश