करवा चौथ
सरला जी जब छोटे से कस्बे में शादी के बाद आयी थी तो पूरा मोहल्ला उनसे मिलने आया था। क्योंकि छोटे कस्बे में लोग एक दूसरे को जानते है पहचानते है साथ में एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होते है आजकल की तरह बड़े शहरों जैसे नहीं, जहाँ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति नहीं होते ही सामने वाले को भी पहचानने से इंकार कर देते है। लेकिन हर जगह अच्छे बुरे लोग होते है जिनसे किसी भी समाज की परिकल्पना की जा सकती है और लोगों के बीच संवाद बना रहे। ताकि हर किसी को हर किसी के अनुभवों से सीखने को मिले। सरला जी को शादी के आज २५ साल हो गए, उनके पति महेश जी एक प्राइवेट नौकरी करते है जहाँ उनके काम को सराहा जाता है और उनके अनुभवों से नए आ रहे लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। महेश जी को उनकी कंपनी से कोई गिला-शिकवा नहीं है लेकिन उन्हें हमेशा करवा-चौथ के दिन अपने बॉस से आधे दिन की छुट्टी के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि उनके बॉस खड़ूस है। वे बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति है लेकिन उन्हें इन पर्व-त्योहारों में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन महेश जी का मानना है कि यही पर्व त्यौहार है जो पति-पत्नी के आपसी रिश्तों को मजबूती प्रदान करते है। यही महेश जी और उनके बॉस के बीच में विचारों का द्वन्द ही करवा-चौथ के दिन हर साल की तरह इस साल भी महेश जी के लिए मुश्किल होने जा रहा था। सरला जी हमेशा कहती थी कैसे बॉस है जो साल भर में एक आधे दिन की छुट्टी के लिए मना करता है तो महेश जी कहते बॉस दिल के बुरे नहीं है मैं जब भी, जो भी कहता हूँ, वो ध्यान से सुनते है और समझते है कभी छुट्टी के लिए मना नहीं करते। लेकिन तुम तो जानती हो वे इन पर्व त्योहारों को गंभीरता से लेते नहीं इसी वजह से आज के दिन हमारी ठन जाती है। महेश जी यह बोल कर ऑफिस चले गए। इन दोनों का एक बेटा भी है जो अब नौकरी करने लग गया है जिसकी शादी के लिए सरला जी और महेश जी सोच रहे है लेकिन अभी तक कोई लड़की जो अपने संस्कारों में फिट बैठती हो मिली नहीं। इसी वजह से अभी तक टलता आ रहा है। वो भी सुबह-सुबह माँ को हिदायत देकर चला गया कि माँ कुछ खा लेना और दवाई ले लेना। मुझे पता है आज करवा-चौथ है फिर भी दवाई के लिए तुम्हें कुछ ना कुछ खा लेना चाहिए क्योंकि पिछली बार जब अस्पताल में भर्ती थी तो डॉक्टर का साफ़ कहना था कि कुछ भी हो जाए खाली पेट दवाई नहीं लेनी है। आखिरी बार जब डॉक्टर के पास गयी थी तो सरला जी स्थिति काफी गंभीर थे। जिसकी वजह से कई दिनों तो उन्हें अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। आदतन सरला जी को घर के काम, पति और बेटे को ऑफिस भेजने के चक्कर में भोजन करने में हमेशा ही काफी विलम्ब हो जाती थी, जिसकी वजह से उनके पेट में गैस की स्थिति धीरे धीरे इतनी भयावह हो गयी कि एक दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। यही वजह है उनका बेटा ऑफिस जाते-जाते यह बोलता गया कि अगर तुम हो तो पूजा होगी अगर तुम नहीं होगी तो तुम्हारे ठाकुर जी का ख्याल कौन रखेगा, इस बारे में सोचना। इसीलिए कुछ भी खाकर दवाई खा लेना, फिर शाम में पूजा भी कर लेना और हाँ मेरा इन्तजार मत करना। क्योंकि तुम्हे पता है करवा-चौथ पर मुझ जैसे अविवाहित को छुट्टी मिलने से रही।
लेकिन कहते है ना महिलाएँ जब अपने पति की बात आती है तो वे किसी की भी नहीं सुनती है बेटे की बात को सुनकर छोटी सी मुस्कराहट से बेटे को ऑफिस के लिए विदा किया और खुद काम निपटाने में लग गयी। दवाई नहीं खाने की वजह से उनको गैस ने परेशान करना शुरू कर दिया। और जैसा महिलाएं करती है इन सब बातों को दरकिनार करते हुए वे अपना काम करती रही। काम करते-करते उन्हें लगभग २ बज गए वो भी बिना पानी पिए और एक समय ऐसा आया कि वे बेहोश होकर गिर पड़ी। संयोगवश उसी समय उनकी पड़ोसन आयी, उन्हें सरला जी से पूछना था कि शाम को एक साथ मिलकर व्रत तोड़ेंगी या अकेले में क्योंकि आजकल उनकी तबियत काफी ख़राब रहने लगी थी। तो काफी देर घंटी बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो पड़ोसन को शक हुआ। उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और दीवार से चढ़कर आँगन में जाकर देखने बोली कि देखो जरा कहीं उन्हें कुछ हो न गया हो और जिस बात का डर था वही हुआ लड़का जब आँगन में पहुंचा तो देखा की सरला जी जमीन में बेसुध पड़ी हुयी है फिर दरवाजा खोलकर अपनी माँ को बुलाया और डॉक्टर को फ़ोन किया और उन्हें जल्दी से कार में बिठाकर अस्पताल ले गया। रास्ते में सरला जी के पति और बेटे को भी फ़ोन कर दिया, वे भागे-भागे अस्पताल आये और डॉक्टर ने काफी जाँच लिखे और साथ में डॉक्टर ने नर्स को पानी चढ़ाने के लिए बोल दिया। फिर महेश जी के पास आकर बोले महेश जी आपको बोले थे सरला जी का इतनी देर तक भूखा रहना उनकी सेहत के लिए सही नहीं है अब देखिये क्या हो गया। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है अब वे ठीक है। लेकिन आज वे घर नहीं जा पाएंगी, मैं कल ही छोड़ पाउँगा, २४ घंटे ओव्सर्वेशन में रखना पडेगा। सरला जी की तबियत के बारे में सुनकर पूरा मोहल्ला उठकर अस्पताल आ गया था फिर यह जानकार कि अब सरला जी तबियत में सुधार है तो सभी धीरे-धीरे अपने अपने घरों को जा रहे थे। अस्प्ताल में रहे गए सरला जी, उनके पति महेश और उनका बेटा। उनका बेटा तो पूरा गुस्से में था कि मैंने माँ को जाते-जाते बोला था कि कुछ खा लेना फिर दवाई भी लेने को बोल गया था लेकिन नहीं इनको किसी के भी बात को सुनना कहाँ है, करना हमेशा अपनी मर्जी की है चाहे इनकी सजा पुरे परिवार को ही क्यों ना भुगतना पड़े। महेश जी को बेटे को समझाने में बहुत मेहनत करना पड़ा क्योंकि उनका बेटा नए ख्यालों का बच्चा था और महेश जी भी इस पर्व त्यौहार से होने वाले मानसिक और शारीरिक परेशानी को समझते थे और उनका मानना था कि एक समय के बाद ऐसे पर्व-त्योहारों को व्यक्ति को अपने शरीर के हिसाब से करने का सोचना चाहिए ताकि तभी अपने भगवान की पूजा हो सके। लेकिन वे पत्नी के विश्वास को भी तोड़ना नहीं चाहते थे। पत्नी के होश में आने के बाद ही महेश जी और उनके बेटे को उनसे मिलने की इजाजत मिल गयी सो दोनों सरला जी के पास गए और महेश जी ने पहले ही अपने बेटे को कह दिया था कि इस मामले में वह चुप रहेगा और सिर्फ उन्हें ही बोलने की इजाजत होगी। पति और बेटे का लटका हुआ मुँह देखकर सरला जी समझ गयी थी और बेटे द्वारा सुबह कही गयी बातों के बारे में सोचने लगी। चुप्पी को तोड़ते हुए महेश जी बोले आज हम ऊपर वाले के शुक्रगुजार है कि हमारी पड़ोसन सही समय पर आकर तुम्हे बचा गयी नहीं तो पता नही आज क्या होता। फिर महेश जी बोले देखो सरला मैं तुम्हारे विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता हूँ लेकिन तुम्हे अपनी सेहत और डॉक्टर की सलाह मानकर अपने बारे में सोचना चाहिए क्योंकि अगर भूखे या उपवास रहकर किसी की जीवन में वृद्धि या सुख हो सकती है तो बहुत सारे लोगों के जीवन में कष्ट ही नहीं आते। लेकिन सबके जीवन में सुख और दुःख अवश्य आते है यही प्रकृति का नियम भी है और हम सबको इसे इसी प्रकार स्वीकारना पड़ेगा। आज तुम हो तो हम दोनों बाप बेटे तुम्हारे इर्द गिर्द घूमते है जरा सोचो कि अगर आज तुम्हे कुछ हो जाता तो हम अपने आपको कैसे संभालते। इसीलिए जीवन में पूजा हमेशा मानवता की होनी चाहिए, यही गीता भी कहती है सब कुछ नश्वर है सिवाय आत्मा के, हमें नहीं पता कि पिछले जन्म में हमारा शरीर कैसा था और अगले जीवन में कैसा होगा इसीलिए आज जो यह जीवन हमें मिला है उसको भरपूर जीकर, प्रभु भक्ति में लगाए तभी जीवन में सार्थकता आएगी और फिर शायद हम अगले जन्म में खुशियों से अपने जीवन को भर पाए। ठाकुर जी कभी नहीं कहते है कि अपने शरीर को कष्ट देकर मुझे खुश करने का प्रयास करों, वे कहते है जो भी करो मुझे समर्पित करो जब हम सब कुछ करके भी आखिर में उन्हें ही समर्पित करते है तो शरीर को कष्ट देकर हम किस प्रकार अपने ठाकुर जी को खुश कर पाएंगे। तुम हो तो तुम्हारे ठाकुर जी है उन्हें समय-समय पर सही तरह से उनकी सेवा हो पा रही है। तुम ठाकुर जी की जितनी सेवा कर पाती हो, क्या हम कर पाएंगे, शायद नहीं। इसीलिए इसपर विचार तुमको करना है और तुम्हे पता है हम बाप-बेटे तुम्हारे साथ हमेशा से रहे है आगे भी रहेंगे। इसके बाद वहाँ पर काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा।
आखिर में सरला जी बोली ठीक है तुम दोनों जब इतना कह रहे हो मैं पर्व त्यौहार छोड़ नहीं सकती लेकिन उसे डॉक्टर के सलाह के हिसाब से करने का पूरा प्रयास करूँगी। इतना कहते ही वहाँ ख़ुशी का माहौल छा गया। चलो जो हो गया सो हो गया लेकिन आज तो चाँद देखकर आज का व्रत तो पूर्ण कर लें। सभी उठकर बाहर आये और सरला जी ने चाँद देखकर करवा-चौथ का व्रत पूरा किया और महेश जी के हाथों से पानी पीकर व्रत तोड़ा। फिर सबने मिलकर अस्पताल में ही खाना खाया। दूसरे दिन सुबह-सुबह महेश जी के बॉस सरला जी से मिलने आये और उनको आँखों-आँखों में ही अपनी बात कह दी कि क्यों वे इस प्रकार पर्व त्यौहार करने को मना करते है। उनका मानना है कि व्यक्ति को अपने शरीर के हिसाब से किसी भी पर्व-त्यौहार को करना चाहिए ताकि परिवार में तथा समाज में सामंजस्य बना रहे और व्यक्ति के स्वास्थ्य की चिंता भी ना करनी पड़े। कहते है किसी भी पर्व या त्यौहार को करने की ख़ुशी तभी हासिल होती है जब परिवार और समाज एक साथ खुशियों में शामिल हो और वो भी बिना किसी बंधन के। पर्व त्यौहार का मतलब ही होता है आपस में खुशियों को साझा करना, ना की एक बंधन में बंधे होकर इसे ढ़ोने का। ढ़ोने से बोझ का बोध होता है लेकिन किसी भी काम बिना बंधन के करने से खुशियों को साझा करने का अवसर प्राप्त होता है जिससे मानव जीवन में खुशियाँ और रोशनी का प्रसार होता है। यही मानव जीवन का आधार है।
©️✍️ शशि धर कुमार