करवा-चौथ बनाम नारी श्रृंगार
अधूरा है श्रृंगार
अधूरा है प्यार
अधूरा है दुलार
बिन नारी श्रृंगार
है कल्पना
किसी कवि की
है रूप सलोना
किसी चित्रकार का
है मंगल मूर्ति
किसी मूर्तिकार की
है सब समाया
नारी श्रृंगार तुझ में
है प्रिय पति की
है माँ बहन बेटी
सा रूप तुझमें
जब रहे बन-संवर कर
सफल है
नारी श्रृंगार तेरा
हर त्यौहार की
है शान नारी
हर पर्व का
रखती मान नारी
लगती सबको
सुहावनी
जब करती
श्रृंगार नारी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल