करवां उसका आगे ही बढ़ता रहा।
गज़ल-
212/212/212/212
करवां उसका आगे ही बढ़ता रहा।
झूठ को सच बताकर वो छलता रहा।1
वो अमीरों को अपना बनाता रहा।
जो था मुफलिस वो बेमौत मरता रहा।2
सबको सपने सुनहरे दिखाए गये,
सच ये हर शख्स बस हाथ मलता रहा।3
उसके चहरे की पहचान मुश्किल बहुत,
रंग गिरगिट के जैसे बदलता रहा।4
था बड़ा नासमझ अपना घर बेचकर,
ऐश दुनिया के हर रोज करता रहा। 5
जाति मजहब का जाला बुना इस तरह,
फॅंस के हर शय इसी में उलझता रहा।6
प्रेम कर ले तू ‘प्रेमी’ है पागल न बन।
है पतन तय तेरा यूं ही चलता रहा।7
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी