करने संधान उठो!
हे आर्यसुत चेत जरा लो अब संज्ञान उठो,
हो तुम राम के वंशज कर यह ध्यान उठो।
रहे एक हाथ शास्त्र तो हो दूजे हाथ शस्त्र,
कि रिपु भ्रष्ट जनों का करने संधान उठो।।
बनने प्रकाशपुंज तिमिर का निदान उठो।
कि रिपु भ्रष्ट जनों का करने संधान उठो।।
न स्वयं पर कायरता की काई जमने दो,
न खुद पर रक्तपिपासु मच्छर पलने दो।
वो जो स्थिर जल देख बुदबुदे उछल रहें,
जरा उन्हें लहरों का स्वाद भी चखने दो।।
है उनकी औकात ही क्या लो जान उठो।
कि रिपु भ्रष्ट जनों का करने संधान उठो।।
सहस्त्रबाहु सम खल के हो संहारक तुम,
हो तेजस्वी, बल बुद्धि ज्ञान के धारक तुम।
न खुद को याचक निर्बल असहाय समझ,
हो रक्षक सनातन संस्कृति के पालक तुम।।
बन कर फिर पुरखों का स्वाभिमान उठो।
कि रिपु भ्रष्ट जनों का करने संधान उठो।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०७/०८/२०२०)