करना है जो वो कर ही चले…
करना है जो वो कर ही चलें,
बातों से मन बहलाये क्यों…
छोटी – छोटी भूले भूलें,
इनको बेकार बढ़ाएं क्यों…
कुछ घर मिट्टी ही रहने दें,
हर घर को महल बनाएं क्यों..
रहे मामूली भी कुछ बाकी…
हर चीज को खास बनाए क्यों..
जो साफ सभी को दिखता है,
बेमतलब उसे छुपाए क्यों..
मामूली- सी तकरारों को,
रहने भी दे,सुलझाए क्यों…
अच्छा है बिखरा भी कुछ हो.
हर बिखरी चीज सजाएं क्यों..
जो बीत चुका उस लम्हे को..
जी -जी कर फिर दोहराए क्यों..
कुछ छूट गया तो है बेहतर..
सब कुछ हमको मिलजाए क्यों..
कर लें रोशन दुनिया अपनी..
आेरों का दिया बुझाएं क्यों..
कुछ किस्से छूट रहे तो क्या..
हर पन्ने कलम चलाएं क्यों..
हर इंसा जगह सही अपने,,
हम उसको जगह दिखाए क्यों..
ये ज़मीं फलक से बेहतर है..
हम फलक जमी पर लाए क्यों..
चुपचाप रहें वाकिफ सबसे..
गा – गाकर उसे सुनाए क्यों..
करना है जो वो कर ही चलें,
बातों से मन बहलाये क्यों..
छोटी – छोटी भूले भूलें,
इनको बेकार बढ़ाएं क्यों.
©प्रिया मैथिल