करना कर्म न त्यागें
कर्म अनादि, वेद प्रतिपादित, करना कर्म न त्यागें
कर्मभूमि में युद्ध करें हम, होकर विमुख न भागें
कर्मवीर जो कर्मनिरत रह, त्याग फलाशा देते
उनसे लोग प्रेरणा पाते, सीख निरन्तर लेते
कर्महीन बन रहें न सोते, ज्ञानवान बन जागें
कर्मभूमि में युद्ध करें हम, होकर विमुख न भागें
उपनिषदों का मर्म यही है, यही धर्म है अपना
कर्म किए बिन मोक्ष न मिलता, सिद्धि सफलता सपना
करने हेतु कर्म आजीवन, शक्ति ईश से माॅंगें
कर्मभूमि में युद्ध करें हम, होकर विमुख न भागें
सुख-दुख, हर्ष-विषाद, जय-अजय, में भिन्नता न मानें
देह नहीं, आत्मा हैं हम, हम- अपने को पहचानें
रहें सदा निर्लिप्त देह से, इष्ट-चरण अनुरागें
कर्मभूमि में युद्ध करें हम, होकर विमुख न भागें
महेश चन्द्र त्रिपाठी