करता है
क्यों खुद को तूँ मेरे अन्दर फिर से आबाद करता है
मेरी रातों की नींदों को क्यों ही बर्बाद करता है
सुनाता है ग़ज़ल अक्सर मुझे पुराने यादों की
खुद ही तवज्जो देता है खुद ही इरशाद करता है
क्यों खुद को तूँ मेरे अन्दर फिर से आबाद करता है
उठा देता है अक्सर तूँ मुझे गहरी नींदों से
तूँ ही बता? क्या तूँ मेरा इमदाद करता है?
क्यों खुद को तूँ मेरे अन्दर फिर से आबाद करता है
तुम्हारे दिल की सुंदरता बखूबी इल्म है मुझको
बाजारू चीजों से तूँ खुद को शमशाद करता है
क्यों खुद को तूँ मेरे अन्दर फिर से आबाद करता है
सिलसिले कैसे चलेंगे निर्बाध तूँ बता मुझे
तूँ ही ख़त्म करता है तूँही आगाज करता है
क्यों खुद को तूँ मेरे अन्दर फिर से आबाद करता है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी