कयोण
हुनर गर हाथ में है तो बेरोजगारी क्यों
नौकरी चाहिए तुम्हें बस सरकारी क्यों ।
जहाँ पे है जरूरत मेघ मल्हार की बेहद
वहाँ गा रहे हो आप राग दरबारी क्यों ।
हौसला है,हिम्मत है,ताकत है,फ़िर भी
रहतें हैं कुछ लोग बनके भिखारी क्यों ।
मिलकियत फक़त मुलाज़िम होने तक है
तो अकड़तें हैं दफ़तर में अधिकारी क्यों।
सदियाँ बीती मगर न समझा अजय कोई
कि आदमी ही है आदमी का शिकारी क्यों।
-अजय प्रसाद