कयामत : एक विचार
खड़ी मौत की डेहरी पर सारी दुनिया,
इससे बढ़कर यार कयामत क्या होगी।
काटे पेड़ बहाए नाले नदियों में,
पाप किए जितने भी सबने सदियों में।
रौंद दिया धरती को पैर तले अपने,
और समन्दर पाट दिए मल से अपने।
बदले में कुदरत की लानत क्या होगी।
इससे बढ़कर यार कयामत क्या होगी।।
जो बोया था पाया उससे दूना है,
कुदरत की ताकत का एक नमूना है।
समय चक्र ने ही ये समय दिखाया है।
जो नीचे था वो अब ऊपर आया है।
खुद की बारी पर फिर हालत क्या होगी।
इससे बढ़कर यार कयामत क्या होगी।।
हर इक कण में काल ताण्डव करता है,
कोई न कोई अब हर क्षण मरता है।
त्राहि त्राहि करते हैं सब शुरुआतों में,
भय लगता है सच से लपटी बातों में।
सोचो जब आएगी शामत क्या होगी।
इससे बढ़कर यार कयामत क्या होगी।।
ऊपर वाले ने जो सबको पटका है,
नींद खोलने को छोटा सा झटका है।
नहीं उठे तो फिर तुम भी खो जाओगे,
किसी सभ्यता द्वारा खोजे जाओगे।
अन्त से भी बेहतर फिर नेमत क्या होगी।
इससे बढ़कर यार कयामत क्या होगी।।
© आचार्य विक्रान्त चौहान