कमाल के समीक्षक
कमाल के समीक्षक
एक मेरा मित्र
बात-बात पर
कोसता है संविधान को
ठहराता है इसे कॉपी-पेस्ट
एक दिन मैंने
पूछ ही लिया
कितनी बार पढ़ा है संविधान
उसने कहा
एक बार भी नहीं
कभी देखा है दूर से
भारतीय संविधान
उसका जवाब था
कभी नहीं देखा
न कभी पढ़ा
न कभी देखा
फिर भी कर डाली
संविधान की समीक्षा
कमाल के समीक्षक हैं
-विनोद सिल्ला©