कमाल करते हो!
कमाल करते हो!
सुनो, तुम भी ना क्या कमाल करते हो,
हम रोते हैं तो हमारी आँखों पर रूमाल रखते हो।
जब हम चोट खाकर दर्द में कराहने लगते हैं,
तो तुम हमदर्दी की दिलकश ढाल बनते हो।
जब हम मुश्किलों से गुज़र रहे होते हैं,
तो तुम हमारे लिए हौंसलों का जाल बुनते हो।
जब हम उदासियों की गहरी गिरफ्त में होते हैं,
तो तुम हमारे लिए तबस्सुम की मशाल बनते हो।
जब हम दुनिया के थपेड़े खाकर ग़मज़दा होते हैं
तो तुम हमारे लिए खुशियों की थाल बनते हो।
जब हम बेज़रियो के दौर से गुज़र रहे होते हैं
तो तुम हमारे लिए उम्मीद की मिसाल बनते हो।
जब हम इल्ज़ामो के बवंडर में फँस जाते हैं,
तो तुम हमारे लिए सुकून का ख्याल बनते हो।
जब हम पतझडो की पनाह में होते हैं,
तो तुम हमारे लिए बहारो की बहकी चाल बनते हो।
जब हमारे सपनो के आईने टूटकर बिखरते हैं
तो तुम उन टुकड़ों में अपने चेहरे का हाल देखते हो।
जब हम खुद से ख़फा होकर खामोश बैठ जाते हैं
तो तुम हमारे लिए बातों का एक शाल बुनते हो।
सुनो,तुम हमारे लिए ना जाने क्या क्या धमाल करते हो,
साहिर हो तुम सलोने,तुम सचमुच कमाल करते हो,
अल्लाह कसम,तुम भी ना कमाल करते हो,
कमाल! क्यों करते हो?
बताओ ना!
सोनल निर्मल नमिता