कभी सोचा है …
सुनो,
इतना भी मुश्किल नहीं है जीना …
सोचो ,
जब भी कभी तुमने
अपने आपको अकेला महसूसा है
कितनी द्फ़े
डबडबाई आँखों से
बमुश्किल नज़रें चुरा कर आसमां की नीली रोशनी मे
सफेद बर्फ की चादरों सी बादलों मे बनते बिगड़ते
नामालूम जाने अनजाने चेहरों मे
किसी एक चेहरे को देख
खिलखिला कर हँसे हो बचपन की तरह …..
सचमुच इतना भी मुश्किल नहीं है जीना ….
सोचो ,
जब भी कभी तुम्हारा दंभ
अपने ही कोटर मे सिमटा देता था तुम्हें
कितनी द्फ़े
हौले हौले अपनी हथेलियों से अपने प्रिय की आँखों को
अचानक ढँक कर
जब कि वो भी तुम्हारी ही तरह सिमटा हुआ है खुद मे
बिल्कुल सुबह की नरमाई गुनगुनी धूप की तरह
मासूम सी उजली हंसी आई है तुम्हारे चेहरे पर…
सचमुच इतना भी मुश्किल नहीं है जीना ….