कभी सोचा है ?
कभी सोचा है ?
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कभी सोचा है ?
मानव की परिधि क्या है ?
कहाँ तक है ?
कितनी है ?
किस रूप में है ?
हाँ ! सोचना जरूरी है |
क्यों कि मानव पशु नहीं है !
मानव तो मानव है |
जिसके पास सोच है ,
विचार और चिंतन है |
यही नहीं !
मानव का दायरा
लौकिक भी है ,
अलौकिक भी |
यदि वह चाहे ,
तो अपनी परिधि को
सीमित कर सकता है
और परिमित भी |
लेकिन………….
असीमित और अपरिमित
बनने के लिए
उसे चाहिए-
सम्यक वाक्
सम्यक दृष्टि
सम्यक संकल्प |
यही नहीं……
कर्म
सद्गुण और
आत्मविश्वास के साथ
आत्मसाक्षात्कार भी जरूरी है |
क्यों कि ?
जब तक मानव
स्व का पहचान नहीं करेगा
तब तक वह –
यायावर बनकर ही रहेगा |
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— डॉ० प्रदीप कुमार दीप