कभी वो पास आता है, कभी तो रूठ जाता है!
कभी वो पास आता है, कभी तो रूठ जाता है!
मेरे लिए ही तो, खुशियां जहां की लूट लाता है!!
नदी की एक लहर सा वो, बहकता चल रहा है!
किनारे पर वो आकर क्यों, हमेशा टूट जाता है!!
अब्तर नहीं है तू, ख्वाइश के पन्नो को क्यों जला बैठा!
हालात को दोषी बताना तो, तुझको खूब आता है!
ज़रा क़द को बढ़ा दे, खुद को अब्र से मिला दे तू!
किनारे को झुका दे तू, बुरा वक्त भी छूट जाता है!!
-सोनिका मिश्रा