कभी वो दुआ तो कभी दवा दे गया
कभी वो दुआ तो कभी दवा दे गया
घुटन की हालत में मुझे हवा दे गया।
दुश्मनों की भीड़ ने जब भी घेरा मुझे
हिफ़ाज़त का एक नया रास्तां दे गया।
दो कदम चलके जब रूह थकने लगी
जिस्म में एक नई सी आत्मा दे गया।
गर कभी वादा कोई तोड़ना चाहा तो
वो ज़हन के सवालों की सज़ा दे गया।
देखने जब लगा मैं लोगों की ख़ामियाँ
हाथों में एक बड़ा सा आईना दे गया।
नेमतों की फ़हरिस्त कितनी बे-अंत है
देखो कब-कब ख़ुदा क्या-क्या दे गया।
Johnny Ahmed ‘क़ैस’