कभी मैं भी मासूम था
हंसता था जब मैं
कई चेहरों पर आ जाती थी मुस्कान
चलता था जब मैं
थाम कर हाथ मां का
हर कोई प्यार से देखता था मुझे
न जाओ हालत पर मेरी आज
कभी मैं भी मासूम था।।
घर पर रौनक रहती थी
जब मैं होता था भाई बहन के साथ
ठहाके लगाकर पड़ोसियों से
शरारत की मेरी हर कोई करता था बात
देखकर मुझको खुशी मिलती थी उन्हें
न जाओ हालत पर मेरी आज
कभी मैं भी मासूम था।।
दिन गुज़र जाता था
खेलते हुए दोस्तों के साथ
फिर शाम गुजरती थी
भाईयों से करते हुए बात
न चलता था पता दिन कब बीत गया
न जाओ हालत पर मेरी आज
कभी मैं भी मासूम था।।
दिन गिनता रहता था
कब आएगा मेरा नया खिलौना
रोज़ पूछता था पापा से
कब मिलेगा मेरा खिलौना मुझे
मिल जाता जब, फिर दो चार दिन
छोड़ता नहीं था वो खिलौना
न जाओ हालत पर मेरी आज
कभी मैं भी मासूम था।।
जो सपने देखता था
उनको ही सच मानता था मैं
सपने देखकर ही
दुख और खुशियां मनाता था मैं
डर जाता था कभी सपने में मैं भी
न जाओ हालत पर मेरी आज
कभी मासूम था मैं भी।।