*कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को*
कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को
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कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को,
सत्य,अहिंसा के पुजारी आँधी भरे तूफ़ान को।
खूब लगे हो तुम महोदय मूल जड़ मिटाने को,
उतना ही तम फैलता जाता प्रकाश फैलाने को,
फिर से वापिस आ जाता तानकर कमान को।
कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को।
मसीहा बन तैयार खड़ा अधिकार दिलानें को,
जो सोये हैँ तान चादर गहरी नींद जगाने को,
बन शिक्षक आन खड़ा पूरे करने अरमान को।
क़भी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को।
आज भी वो मौजूद है लोकतंत्र की बस्ती में,
ऑंखें रोती रहती है देख देश हालत खस्ती में,
वक्त आ गया अब तो खोलो बंद जुबान को।
कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को।
मोहनदास कर्मचंद गाँधी वे पत्थर के मील थे,
भारत की आजादी की माने जाते वो नींव थे।
सादी सी वो खड़ी पहने महापुरुष इंसान को।
कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को।
मनसीरत जन जन के संग वतन का संतरी है,
गाँधी तन मन मे धर लो आज गाँधी जयंती है,
रोक नहीं पाएँगे गद्दार मन मे आये उफान को।
कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को।
कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को।
सत्य अहिंसा के पुजारी आँधी भरे तूफ़ान को।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)