*कभी मस्तिष्क से ज्यादा, हृदय से काम लेता हूॅं (हिंदी गजल)*
कभी मस्तिष्क से ज्यादा, हृदय से काम लेता हूॅं (हिंदी गजल)
—————————————-
1)
कभी मस्तिष्क से ज्यादा, हृदय से काम लेता हूॅं
नदी में पाल की नौका, सदृश खुद को मैं खेता हूॅं
2)
मुझे मालूम है कुछ कार्य, के मतलब नहीं होते
निरर्थक ही सही लेकिन, समय उनको भी देता हूॅं
3)
गृहस्थी में खुशी अपनी, बहुत मायने नहीं रखती
मैं मुखिया हूॅं अतः घर की, खुशी का मैं प्रणेता हूॅं
4)
कभी परिवार के भी संग, तो कुछ क्षण बिताने दो
नहीं हरगिज नहीं मैं हर, समय मैं सिर्फ नेता हूॅं
5)
कभी बाजार से निकला, दुकानों पर कभी बैठा
कभी मैं सिर्फ विक्रेता, कभी मैं एक क्रेता हूॅं
—————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451