कभी भीड़ में…
कभी भीड़ में….
कभी भीड़ में या अकेले में
खो गया दुनिया के मेले में
हर तरफ़ आदमी ही आदमी
जिस्म ओढ़े रूह की है कमी
सब कह रहे सुन भी रहे यहाँ
पर समझ रहा कोई कहाँ
आपस में कट के चल रहे
खुद को पल पल छल रहे
ज़िंदगी न मिलेगा तेरा पता
तो भला जियेंगे कैसे बता
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया