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11 Mar 2022 · 1 min read

कभी बैठकर तो देखो दो घड़ी

बेज़ुबान
कभी बैठकर तो देखो दो घड़ी
इन बेज़ुबान प्राणियों के साथ
बड़ी मीठी होती है इनकी मूक सी ज़बान
चाहते हैं ये भी हमसे प्यार
अपनी भाव भंगिमाओं से दर्शाते हैं
अपने मन के भाव
कभी तो समझो इनके भी मन की बात ॥
थर-थर काँपते है बकरी मुर्ग़ी के प्राण
कसाई की देख तेज छुरी की धार
बन रहे हैं इन्सान की भूख का आहार
कभी ना किया जिसका नुक़सान
साँसों को फिर से पाने की ललक
बेबस लाचार सी आँखों में दिखती है झलक
जीवन से अपने है इन्हें भी प्यार
कभी तो समझो इनके भी मन की बात ॥
बलि के नाम पर देते हैं बकरे को जन्नत
कभी पूछो उससे कब माँगी उसने ऐसी मन्नत
पिंजरे में बन्द पंछी कैसे गाये मधुर गान
देख अपने साथियों की ऊँची उड़ान
चाहते हैं ये अपनी ग़ुलामी से निजात
माँगते हैं ये अबोध जीव स्वतन्त्रता का दान
कभी तो समझो इनके भी मन की बात ॥
दर्द से चीखता लहूलुहान गली के डोगी
का मन पूछता है सवाल क्यूँ मारा मुझे
पत्थर मैं तो सो रहा था मज़े के साथ
घोड़े की टांगों को भी चाहिए आराम विराम
नंगी तपती सड़कों पर भागता है लेकर माल
भरी सवारियों के साथ गाड़ी दिन दुपहरी शाम
नहीं करता अपने मालिक से एक भी सवाल
इन बेज़ुबान की भी है भावनायें जज़्बात
कभी तो समझो इनके भी मन की बात
कभी तो समझो इनके भी मन की बात ||
दीपाली कालरा

Language: Hindi
1 Like · 282 Views
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