कभी बहुत होकर भी कुछ नहीं सा लगता है,
कभी बहुत होकर भी कुछ नहीं सा लगता है,
कभी भीड़ तो कभी एकांत सा लगता है,
रोज की अफरा तफरी से थक गये हैं हम,
कभी मना कर तो कभी खुद से रूठ गए हैं हम,
ऐ जिन्दगी तेरा तो हिसाब ही अलग है,
क्यों एक ही किरदार में कई रंग भर दिए है तूने।
सुनील माहेश्वरी