कभी ना सोचें कि ऐसा होता !
कभी ना सोचें कि ऐसा होता !
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कभी ना सोचें कि ऐसा होता !
कभी ना सोचें कि वैसा होता !
हम जैसे भी हैं उसी में खुश रहें ,
बस, इसी में सबका भला होगा !!
मनुष्य किसी न किसी मोड़ पे ,
ये सोचने को मजबूर हो जाता !
कि हम कहीं और ही होते तो….
हमारी दुनिया कुछ और ही होती !!
बस , इसी चिंतन मनन में उसकी
भावनाऍं भी संकुचित होती जाती !
व्यक्तित्व उसका निखर नहीं पाता….
किसी तरह वो ज़िंदगी काटता जाता !!
वो कभी ये मानने को तैयार क्यों नहीं ?
कि अन्यत्र कहीं और भी बुरा हाल होता !
जरूरी नहीं कि घर-बार खुशहाल होता !
परिकल्पना मात्र से किसका भला होता ?
ये तो बस, मन को झूठी तसल्ली ही देता !!
आप जहाॅं कहीं भी हैं, बिंदास जियें ,
जो भी काम करते हैं , बेधड़क करें !
वे सभी कार्य अच्छे हैं जो खुशियाॅं दे ,
वर्तमान परिस्थिति में ही खुशहाल रहें !!
जो कोई वर्तमान को नहीं जी पाएगा ,
वो सदा घूंट – घूंट कर ही मर जाएगा !
थोड़ी-बहुत जो खुशियाॅं मिलने वाली थीं ,
उससे भी सदैव वंचित ही वो रह जाएगा !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 25 नवंबर, 2021.
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