कभी नहीं है हारा मन (गीतिका)
कभी नहीं है हारा मन
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जीवन पथ पर बढ़ता रहता, कभी नहीं है हारा मन।
स्वयं पुकारा करता हमको, बन जाता हरकारा मन।
कभी कभी जब थक जाते हम, कर लेते विश्राम तनिक।
साथ साथ फिर कदम बढ़ाता, भाव भरा दुखियारा मन।
फूलों के मौसम में हँसता, मौन देख लेता पतझड़।
सर्दी गर्मी हर मौसम को, सहता खूब हमारा मन।
जीवन की हर बात समझता, किंतु सभी कहना मुश्किल।
कभी उलझ जाता बातों में, करता कभी किनारा मन।
कभी निराशा के क्षण आते, अंधकार दिखता सम्मुख।
आस किरण लेकर आ जाता, बनता एक सहारा मन।
भाव स्नेह के जग जाते जब, अंतर्मन होता हर्षित।
धवल चांदनी में चंदा संग, बनता एक सितारा मन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)