*कभी तो खुली किताब सी हो जिंदगी*
कभी तो खुली सी किताब हो जिंदगी
किताब के पन्नों को पलटते हुए निगाहें,
थम सी गई ख्यालों में गुम हो गई जिंदगी।
धड़कनें तेज हुई रिश्तों की दरकार से ,
कुछ क्षण रूक कर ठहरती सी जिंदगी।
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हाल बेहाल बैचेन लाचार होकर,
पुराने जमाने की यादों में खोई सी जिंदगी।
आंखें बंद कर देख सुकून मिलता,
कभी रूठते कभी मानते हुए बीत रही ये जिंदगी।
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कुछ हमारी भी जरा सुन लो,
कुछ अपनी भी कह लो सुना दो ,
कोई पास बैठकर भी बोल सके तो ,
कभी पास रहकर भी जो कुछ मिल ना सके,
कोई सहारा देके साथ रह सके ,
बस इतनी सी बात मान सके ,
तेरे भरोसे छोड़ दे दुनिया सारी उमर,
वो खुशी के खुशनुमा पलों की क्या बात है जिंदगी।
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खुशी मिले चाहे कितने गम मिले ,
हरदम साथ रहने की कसमें वादे किए हैं,
वही साथ हमेशा साथ रहे,
साथ साथ चलते हुए ही ,
हर हाल में तेरा सहारा मिले ,
देख लिया सबको आजमा कर ,
दुख के समय जो साथ दे हरदम ,
अपनापन जताएं वो ,
आने वाले सुख दुख में हौसला बढ़ाए ,
प्रेम विश्वास दिलाए।
यही खुशहाल सी जिंदगी,
ना जाने क्यों अपनापन जताएं ना कोई ,
कर्म धर्म युद्ध से ही काम सफल हो ,
अशांत मन खुशनुमा माहौल बनाएं जिंदगी,
कभी तो खुली किताब सी हो जिंदगी,
जिसे हर कोई पढ़ पाए मीठी यादों में बस जाएं ये जिंदगी।
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शशिकला व्यास शिल्पी