कभी तो इसको खत्म करो
कभी तो इसको खत्म करो
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देश को मेरे नजर लग गई है
ऐसा देश नहीं था मेरा।
अपने लिए जीता हर इंसा
ऐसा देश नहीं था मेरा।
हे मानव हे देश के मालिक
आज तुझे क्या हो गया है,
कहां गई वो मानवता तेरी
कहां खो गई नैतिकता सारी।
क्यूं नहीं खौलता खून ये तेरा
जब नारी जाती है जलाई,
बोल क्यूं नहीं पाता प्राणी
अस्मत कोई जब लूटी जाती।
क्यूं बिक जाता है इमां ये तेरा
झूठ जहां बोला जाता है,
दिल में शोले कहां दब जाते
मजलूम का घर जब लूटा जाता।
क्यूं आंखों की अग्नि ठंडी है जब
वृद्ध कोई घर से निकाला जाता,
हाथों में ये जंजीरें भी कैसी
भोला भाला जब पीटा जाता।
क्यूं पैरों में पड़ी हैं बेड़ियां
दरिंदगी हो जब आंखो के आगे,
उतार फेंक ये झूठा चोला
नपुंसक जिसने बना डाला है।
क्या ज़मीर नहीं कहता तेरा
गलत है इसको बंद करो,
ये मेरी संस्कृति नहीं है
कभी तो इसको खत्म करो।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (म प्र)
( मौलिक एवम् स्वरचित )