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16 Nov 2023 · 1 min read

कभी तू ले चल मुझे भी काशी

कभी तू ले चल मुझे भी काशी कि ऐसा कुछ इंतिज़ाम कर दे
सरल नहीं तुझ से दिल लगाना यही कठिन काज-काम कर दे

सगर के पुत्रों को मुक्ति देने जटा से उतरी है तेरी गंगा
मेरी भी कुटिया में आ के भोले दरस दिखा कर के शाम कर दे

दया का सागर तू है विधाता, गुज़र रहा मेरा व्यर्थ जीवन
भटकते मन को विराम देकर अँधेरे मन का ये काम कर दे

तेरी कृपा से जनम सफ़ल हो भजन करूँ सुब्ह-शाम तेरे
तेरा नशा अब उतर न पाये ज़बाँ पे तेरा ही नाम कर दे

कपाल पर चांद की छटा है विभूति देते परम कृपा से
नगर में हो गर कोई शिवालय तो सर झुकाकर सलाम कर दे

मुझे भरोसा है अपने शिव पर मेरी भी बिगड़ी बनेगी इक दिन
न दुख का आँगन रहे मकाँ में तू आ के कैलाश धाम कर दे

सँवार डाला है तू ने सबको मुझे भी दासी बना ले अपनी
जनम सफ़ल कर दे मुक्तिदाता तेरे चरण में मक़ाम कर दे

Language: Hindi
77 Views
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