कभी जो रास्ते तलाशते थे घर की तरफ आने को, अब वही राहें घर से
कभी जो रास्ते तलाशते थे घर की तरफ आने को, अब वही राहें घर से दूर ले जाती हैं।
जिन पगडंडियों पर चलना सीखा, वो पगडंडियां भी अब नजरें चुराती हैं।
©®मनीषा मंजरी
Source- यादों की आहटें (coming soon)