कभी जो किया था अनोखा बहाना
कभी जो किया था अनोखा बहाना
हमें आपका याद आता बहाना
सनम ढूंढ़ लाओ नया सा बहाना
नहीं अब चलेगा पुराना बहाना
भरोसा न करते भला किस तरह हम
नज़र को झुकाकर बनाया बहाना
मगर आप नाराज़ भी हो गये थे
नहीं रास आया हमारा बहाना
है मन्ज़ूर हमको , नहीं अब करेंगे
अगर आपकी ज़िद , न होगा बहाना
अगर हो शिकायत सभी बोल देते
मुहब्बत में चलता सभी का बहाना
कई बार वादे हुये इस तरह के
सभी वस्फ़ करते कि उम्दा बहाना
लगाकर बहाना न दिल को दुखाओ
सदा याद रक्खो न अच्छा बहाना
कई बार मुश्क़िल हुई ज़िन्दगी में
न ‘आनन्द’ जाने बनाना बहाना
शब्दार्थ:- वस्फ़ = तारीफ़
– डॉ आनन्द किशोर