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16 Sep 2024 · 1 min read

कभी जो अभ्र जम जाए

कभी जो अभ्र जम जाए तो शीशा तोड़ मत देना, बिखर जाए अगर सपने सजाना छोड़ मत देना।

उठाए जा सितम दिल पे अपने भी पराए भी किसी भी मोड़ पर ये दिल के रिश्ते तोड़ मत देना।

अगर तकलीफ ना हो तो भला फिर जिंदगी कैसी देखकर सामने गर्दिश निगाहें मोड़ मत लेना।

मुसाफिर हूं मैं चलता ही रहूंगा आख़री दम तक
यही सोच पग बढाना इरादे तोड़ मत देना।

▲ शुभम आनंद मनमीत

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