” कभी – कभी “
कभी – कभी ये दुनिया इतनी बड़ी लगती है ,
जब एक ही शहर में रह कर उस सख्स से नहीं मिल पाते हैं जिनसे मिलना चाहते हैं ।
कभी – कभी ये दुनिया इतनी छोटी लगती है ,
जिन्हें जानते भी नहीं उसने बार – बार टकराते हैं ।
कभी – कभी रुक जाने को मन करता है ,
जब हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं ।
कभी – कभी भटकते रहने का दिल करता है ,
जब मंजिल के रास्ते ही मिल नहीं पाते हैं ।
कभी – कभी रोए जाने का मन करता है ,
जब आंसुओं को रोक नहीं पाते है ।
कभी – कभी खामोश हो जाने को मन करता है ,
जब अपने ही हर बात को गलत समझते लगते है ।
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️