कभी – कभी
बुलबुले सी है ये ज़िंदगी ,
हादसों के दोस पर फ़ना है ये ज़िंदगी ,
कभी खुशियों का जहान ,
कभी ग़मों का सामान है ये ज़िंदगी ,
कभी कुछ बहकी- बहकी सी ,
कभी कुछ लहकी – लहकी सी ,
कभी अपनों से जुदा ,
कभी गैरों पर फ़िदा सी है ये ज़िंदगी ,
कभी एहसास – ए- फ़र्ज़ ओ फ़िक्र ,
कभी एहसान- ए – करम ओ ज़र्फ़ में
डूबी सी है ये ज़िंदगी ,
कभी कुछ हमदर्द सी ,
कभी कुछ खुदगर्ज़ सी है ये ज़िंदगी ,
कभी यादों के अब्रों का कारवां ,
कभी भटके कदमों के निशां सी है ये ज़िंदगी ,
कभी सुलगती चिंगारी सी ,
कभी दहकते अंगारों सी है ये ज़िंदगी ,
कभी मुसीबत की लहरों से जूझकर आगे बढ़ती ,
कभी साजिशों के भँवर में फंसती सी है ये ज़िदगी ,
कभी गुमसुम सी ,
कभी बे -ख़ुद ग़ुमशुदा सी ,
सब कुछ समझा देती है ये ज़िंदगी ।