कभी कभी
गीतिका
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कभी कभी जीवन में अक्सर, धोखा हो जाता है।
अहं भाव की निद्रा में जब, मानव भरमाता है।
रात दिन जल नदी में बहता, अविरल हर मौसम में।
अन्त समय सागर में मिलकर, मंजिल को पाता है।
दूर हकीकत से रहकर है, लाभ नहीं कुछ होता।
स्वार्थ लिए जो छले स्वयं को, वह फिर पछताता है।
छल फरेब से जब दूरी हो, राह बने है सुखकर।
साथी मिल जाता है प्यारा, हर साथ निभाता है।
जो भी दगा किया करता है, सुखी नहीं रह पाता।
पग पग पर अपने जीवन में, ठोकर भी खाता है।
जागे रहना बहुत जरूरी, हरपल हर हालत में।
धोखा खाने से जो बचता, वह मौज मनाता है।
दोस्त उसी को सच्चा समझें, काम समय जो आए।
कष्टों में भी साथ निभाता, खिलता मुस्काता है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/०६/०५/२०२४