*** कभी-कभी…..!!! ***
“” कभी-कभी सोचा करती हूँ मैं…
मेरा-तेरा साथ कब तक है, पता नहीं…!
हम में विकास की नशा इतनी प्रबल है…
कब कम होगा, कुछ पता नहीं…!
यदि तुम न हो तब….
हरियाली कौन लायेगा…?
शीतल समीर…
कब अतंर-आकूल मन हर्षायेगा…?
यदि तुम न हो तब…
स्वच्छ सांस कौन दिलायेगा…?
गर्म-तप्त हवाओं से…
राहगीर को कौन बचायेगा…?
ऑक्सीजन का सिलेंडर लिए…
कब तक जीवन-पथ तय कर पायेगा…?
कभी-कभी सोचा करती हूँ मैं…
मेरा-तेरा साथ कब तक है, कुछ पता नहीं…!
कुल्हाड़ी लिये हाथों में, मानव की…
जज़्बातों की इरादा, कुछ पता नहीं…!
यदि तुम न हो…
बरखा-रानी कब आयेगी, कुछ अनुमान नहीं…?
कोयल कुहूकेगी…
या मोर नाचेगी, कुछ पता नहीं…!
उपवन-कानन में, कुछ फुल खिलेंगे…
या भौंरे गुनगुनायेंगे, कुछ पता नहीं…!
मेरी मुस्कराहट की…
या खिलखिलाहट की दौर…
कब तक है, कुछ अंदाजा नहीं…!
तुम से कब तक लिपटी रहूँ…
मेरी कानों में, कुछ आहट नहीं…!
चूंकि… विकास से …
पलायन वेग की गति भी लांघ चुके हैं हम…!
चूंकि… विकास से…
पलायन वेग की गति को भी लांच चुके हैं हम…!!
*****************∆∆∆****************