कभी कभी
होती है खुद से यार शिकायत कभी-कभी।
करता है दिल भी मुझसे बगा़वत कभी-कभी।
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मिलते नहीं हो मुझ से, मिलते सभी से हो।लगता है कर रहे हो अ़दावत कभी-कभी।
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नज़रें लुटा रही हैं मोहब्बत की दौलतें।
मेरी तरफ भी कर दो इ़नायत कभी कभी।
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बीमार ए इश्क़ हूं मुझे आकर के थाम लो।
नासाज़ मुझको लगती त़बीयत कभी कभी।
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मेरे हो सिर्फ मेरे, किसी और के नहीं।
दिल भी तो कर रहा है सियासत कभी कभी।
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दिल का मेरे सुकून हो मेरा क़रार हो।
मुझको दिखा दिया करो सू़रत कभी-कभी।
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माना कि मुझसे भूल गर हो जाए प्यार में।
देना मोहब्बतों में रिया़यत कभी कभी।
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हर हुक्म मान लेना उफ़ तक कभी न करना।
काम आती है बड़ों की नसीहत कभी-कभी।
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कैसे बताएं, कैसी है हालत तेरे बगैर।
लगता है दूर रहना कयामत कभी-कभी।
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मिलते नहीं है वस्ल के मौके यह बार-बार।मिलती है जिंदगी में मोहलत कभी-कभी।
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कोई भी रास्ता मुझे आता नहीं नजर।
ले जाती है ऐसे मोड़ पर किस्मत कभी कभी।
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सांसे भी साथ छोड़ के जायेंगी एक दिन।
लगती है जिंदगी की कीमत कभी-कभी।
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तुम तो गुले बहार हो चंदा की चांदनी।
मुझको भी करने देना जियारत कभी कभी।
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ज़र्रा हूं मैं सगी़र किसी काम का नहीं।
पड़ती है हर किसी को
ज़रूरत कभी कभी।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच