कभी कभी चाह होती है
कभी कभी चाह होती है
कुछ अच्छा जी लेने की ….
ये अच्छा जी लेना
मेरी निगाहों से दूर, बहुत दूर ….
जंगली फूलों से गुलजार मैदान है
जहां पहुँचना,
कहीं ना पहुँचने से भी
ज्यादा तकलीफ़देह है मेरे लिए
सुकून बस इसे निहार लेने भर में है
वहाँ फूल तो हैं
ऐसे फूल जिनमें महक नहीं है
पूरी शिद्दत से जानता हूँ मैं
ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही तो है
कुछ ख्वाबों, अधूरी ख्वाहिशों से
अटी लदी बिखरी सी
जिनके पूरे ना होने का मलाल
उम्र भर साथ चलता है
पर वाकिफ़ होते हैं हम
इस हकीकत से
इन्हें ऐसे ही अधूरा रहना है
हिमांशु Kulshrestha